मुझे याद है कि 1912 में मैं चंद्रशंकर के साथ यूनियन का मंत्री बना था. 1913 में हमने उसका सारा ढांचा बदल दिया. संस्था का नाम ‘गुर्जर सभा’ रख दिया. त्रिभुवनदास राजा उस समय बी.ए. में थे, वे और मैं…
Category: विधाएँ
सीधी चढ़ान (ग्यारहवीं क़िस्त)
दूसरे दिन जीजी मां और बहू बम्बई के लिए रवाना हुई. उनके उत्साह की सीमा नहीं थी. वे बम्बई के नये घर में आकर रहीं. ‘भाई’ को मानपत्र मिलते देख कर वे हर्ष से फूली न समायी. हम सब पुनः…
सीधी चढ़ान (दसवीं क़िस्त)
पूर्वकाल में जिस प्रकार नैमिषारण्य में ऋषिगण शौनक के पास गये थे, उसी प्रकार पाठक, लेखक के पास जाकर, नम्रता से हाथ जोड़कर प्रश्न करता है- ‘हे लेखक, इस खंड का शीर्षक ‘मध्वरण्य’ मैंने पढ़ा. यह मध्वरण्य क्या? यह खंड…
सीधी चढ़ान (नौवीं क़िस्त)
मुहम्मदअली जिन्ना और मैं इस समय एक दूसरे से भिन्न दुनिया में घूम रहे थे. एक समय हम खूब निकट थे. मेरे पास होने के पश्चात उनका प्रथम दर्शन मुझे 1913 के नवम्बर की पहली तारीख को हुआ. मैंने अंकित…
सीधी चढ़ान (आठवीं क़िस्त)
सन् 1897 में चिमनभाई ओरिजिनल साइड के एडवोकेट हुए. अंग्रेज़ बैरिस्टरों से भरपूर उस साइड में इकतीस वर्ष की आयु के इस वकील का आगमन ज़रा धृष्टतापूर्ण था. 1899 में वे डाकोरजी के केस में विलायत गये. थोड़े समय में…