Category: स्तंभ

अपना धर्म

धर्म, नीति या शिक्षा के क्षेत्र में साधन या नियमन के जो कुछ प्रयास होते हैं, उनमें अधिकांश यह वस्तु भुला दी जाती है कि मनुष्य का विशिष्ट स्वभाव ही व्यक्तित्व की एकमात्र नींव या आधार है. मैं जवानी में…

सरहदों को लांघतीं बाल कहानियां

♦   भुवेंद्र त्यागी  >    एक राजा था, एक रानी थी, उनके चार राजकुमार थे… सुंदरवन में भोलू भालू, नटखट बंदर, चालाक लोमड़ी और बघेरा बाघ रहते थे… एक बार गर्मी की दोपहर एक कौवे को ज़ोर से प्यास…

यदि आपका बालक आपसे कहे…

♦  गिजूभाई    >   मान लीजिए कि आपका बालक आपसे कहे कि पिताजी, मैं यहां लिख रहा हूं. ज़ोर-ज़ोर से बातें करके आप मेरे लिखने में रुकावट मत डालिए. मान लीजिए कि आपका बालक आपसे कहे कि आप बड़े-बड़े…

बचपन के दिन भी क्या दिन थे  

♦  मनमोहन सरल   > अभी स्कूल में ही था कि अक्सर सुनने को मिलता, ‘बचपना छोड़ो, अब तुम बड़े हो गये हो.’ कभी बाबूजी तो कभी मम्मी और दूसरे बड़े भी. कभी कोई कहता, ‘क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो?’…

जी ! मैं बचपन बोलता हूं…

♦  रमेश थानवी   >   जी… हलो, हलो… जी मैं बचपन बोलता हूं. आपके घर से ही बोल रहा हूं. उन तमाम लोगों से बोलता हूं जो 25 के पार हो गये हैं, 55 के पार हो गये हैं या 75…